2024-08-19
प्रतापगढ़। जिले के ग्राम लुहारखाली में बिरसा मुंडा चौराहे चौक में ग्राम एकीकरण समिति (VCC) का गठन किया गया । जिसमें आर्टिकल 244 (13,3) क के अनुरूप VCC द्वारा रूढ़िजन्य ग्रामसभा की शक्तियों का प्रयोग करते हुए ग्राम स्तरीय में झगड़ों एवं समस्याओं को ग्रामसभा के माध्यम से निपटने का प्रण लिया गया।
अनुसूचित क्षेत्र में आदिवासियों के हित में आए विभिन्न कोर्ट फैसलों जानकारियां दी गई
समता बनाम आंध्र प्रदेश राज्य निर्णय, 1997 के अभूतपूर्व मामले में, जिसे समता निर्णय के नाम से जाना जाता है, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने देश के अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के आजीविका के अधिकार के पक्ष में एक आधिकारिक निर्णय दिया। इस मामले में, न्यायपालिका आदिवासी समुदाय के अधिकारों को बनाए रखने में अपने चरम पर पहुंच गई।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त 'जीवन के अधिकार' के सर्वोच्च संवैधानिक प्रावधान को मान्यता देते हुए, फैसले में कहा गया कि 'आदिवासियों को भी सामाजिक और आर्थिक सशक्तीकरण के समान अधिकार हैं। विकास के अधिकार के एक हिस्से के रूप में, पूर्ण स्वतंत्रता का आनंद लेने के लिए, अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि को आदिवासियों के सामाजिक आर्थिक सशक्तीकरण के लिए संरक्षित किया जाना है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी भी परियोजना से होने वाले लाभ का कम से कम 20% प्रभावित आदिवासी लोगों की विकास आवश्यकताओं के लिए एक स्थायी निधि के रूप में अलग रखा जाना चाहिए,
राज्य के स्वामित्व वाली एजेंसियों या निगमों को आदिवासी भूमि का हस्तांतरण ऐसे प्रतिबंधों से बाहर रखा गया है।
लोगों के अधिकारों और संसाधनों की अनदेखी करने वाले सरकार के ऐसे मनमाने फैसलों के कारण,जो निजी खनन कंपनियों द्वारा विस्थापित और प्रभावित होंगे इस पर समता ने 1993 में आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालय में इस आधार पर एक जनहित याचिका दायर की गई थी कि अनूसूचित क्षेत्र में सरकार भी एक 'व्यक्ति' है और इसलिए उसके पास अनुसूचित क्षेत्र में गैर-आदिवासियों को पट्टे देने का अधिकार नहीं है। चार साल तक लगातार संघर्ष के बाद, जुलाई 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक समता फैसला सुनाया।
और आदिवासियों के हित में फैसला दिया गया है।
लेकिन आज भी देश की विभिन्न सरकारी आदिवासियों की जमीनों पर अपनी नज़रें गढ़ाए हुए हैं।
अनुसूचित क्षेत्र में सरकार की एक इंच भी जमीन नही है।विकास के नाम पर आदिवासियों के विनाश पर तुली है।
भारत का सर्वोच्च न्यायालय
पी. रामी रेड्डी एवं अन्य आदि बनाम आंध्र प्रदेश राज्य एवं अन्य आदि, 14 जुलाई, 1988 नेवी ऐतिहासिक फैसला देते हुए यह बोला है कि आदिवासियों की जमीन किसी गैर आदिवासी के नाम पर नहीं हो सकती है।
तो फिर भी कैसे अनुसूचित क्षेत्र आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों के नाम पर हो रही है या कंपनियों को दे दी जा रही है।
इन सभी जमीन हस्तांतरण से संबंधित कानून का पालन क्यों नहीं किया जा रहा है।
इन सभी मुद्दों को ग्राम सभा को सशक्त बनाकर उठाएंगे एवं अनुसूचित क्षेत्र की जमीनों को बचाने के लिए कार्य करेंगे। क्योंकि रूढ़िगत ग्राम सभा को विधि का बल प्राप्त है।
"ना लोकसभा ना विधानसभा सबसे ऊंची ग्राम सभा" के शब्दों के साथ में किसी बैठक को संपन्न किया गया जिसमें अरविंद बुज, राजेश डिंडोर दिनेश निनामा,सूरज मईडा, बहादुर निनामा,शंकर पांडोर,रामलाल,देवीलाल चारेल,नारायण लाल, छगन लाल,रामलाल डामोर,गणेश डामोर,सुखराम डामोर,प्रह्लाद डूंगात,बाबूलाल निनामा,सुमन निनामा, हदीया, बालू,श्यामलाल,अक्षत निनामा एवम अन्य समस्त सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे।